20190303

लाज त शिवभक्त नागा बाबाहरुले होइन हामी बस्त्रले मात्र ढाकिएका बास्तबिक नागा र अज्ञानीहरुले पो मान्नुपर्ने रहेछ !

- रामप्रसाद खनाल -
एक दिन श्रीमती छोड्न नसक्ने श्रीमानहरु र एक दिन श्रीमान छोड्न नसक्ने श्रीमतीहरु, सँसारिक माया, मोह, स्वार्थ, तेरो मेरो भन्न, आफु आफुमै लड्न भिड्न तयार हामी जस्ताहरुको बसको कुरा रहेनछ नागा बाबा, नागा आमा बन्ने कुरा !!
(पुरा पढेर बुझेर मात्र कम्मेन्ट गर्न सबै सँग आग्रह छ ।) 

नागा बाबाहरु देख्दा म पनि लाजले भुतुक्क हुन्थेँ । सोँच्दथे धर्मका नाम मा यो अती नै बिकृति भयो । यस्तो पनि हुन्छ ? पशुपतिनाथमा मात्र होइन नेपाल भर नागा बाबाहरुलाई प्रबेश निसेध गर्दै यो बिकृति हटाउन पशुपती क्षेत्र बिकास कोस र नेपालको सरकारी स्तर बाटै कडा कदम उठाउनुपर्ने माग राख्दै लेख्ने बोल्ने मै हुँँ । केही बर्ष अघि सम्म  
मैले नागा बाबाहरुको बिषयमा सधैं नकारात्मक टिप्पणी गर्दथेँ । महाशिवरात्रीका बेला  म झसङ्गै भएँ । मैले मन मनै सोँचेँ कतै मैले गल्ती त गरिरहेको छैन ? त्यस पछि त्यस सम्बन्धमा अध्ययन शुरु गरेँ । पहिला नागा बाबाहरुको नाङ्गो पनले भुतुक्क हुने म अब भने मेरो अल्पज्ञान लाई देखेर लाजले भुतुक्क हुन थालेँ । नागा बाबाहरु प्रति मेरो श्रध्दा अध्ययन पछि आकाशियो । मलाई थाहा छ मैले यसो भन्दा यहाँ मलाई शाब्दिक आकर्मण हुन सक्छ म फेस गर्न तयार छु । म अहिले नागा बाबाहरुको कठोर त्याग, तपस्या र उनिहरुले धर्मका लागि गरेको बलिदान प्रति नतमस्तक मात्र छु ।
नागा बाबाहरुको नबुझेर अन्जान मा बिरोध गर्नेहरुलाई म यस बारेमा अध्ययन गर्न बिनम्र अनुरोध गर्दछु । अहिले त जे चाहियो गुगल गर्नुस भेट्न सकिन्छ । मेरो सल्लाह नेपालीमा नागा बाबा वा अङ्रेजीमा वा हिन्दी भाषामा गएर खोज्नुस तपाईंले सबै भेट्टाउनुहुनेछ । नागा बाबा हरुका बारेमा केही जानकारी र तस्बीरहरु मैले बिभिन्न मिडियाहरु बाट समेत लिएर तल प्रस्तुत गरेको छु ।
* नागा बाबा बन्न र नागा बाबा भन्न ६ बर्ष देखी १२ बर्ष सम्म त्याग तपस्या गर्नुपर्ने रहेछ ।
* नागा बाबा बन्न घर गृहस्ती, लोभ लालच सबकुरा त्याग्न सक्नुपर्ने रहेछ ।
* सँसारमै कडा र गार्हो मानिने सेना प्रहरीको जस्तो अत्यन्त कठिन र लामो तालिम पुरा गरेर मात्र नागा बाबा बन्न सकिँदो रहेछ ।
* माछा मासु देखी धेरै खाले खाद्यान्न मा बन्देज रहेछ नागा बाबा हरुलाई ।
* युद्ध कला कौशल हरकुरामा पोख्त हुनुपर्ने रहेछ ।
* यि र यस्ता धेरै कुराहरु, मापदन्डहरु पुरा गरेर सँसारिक माया मोह मनोरन्जन सब कुरा त्यागेर बनेका नागा बाबाहरु मात्र होइन नागा आमा हरु पनि हुँदा रहेछन जो सबै थोक छोडेर धर्मका लागि बान्छेका हुँदा रहेछन ।

यस्ता तपस्वी नागा बाबा हरु र नागा आमाहरुका बिषयमा मैले बोल्ने टिप्पणी गर्ने कुनै हैसियत राख्दिन । तर एउटा मेरो भन्नु के छ भने नागा बाबा आमा हरुले कमसेकम गुप्ताङ्ग हरु सम्म ढाक्ने चाहिँ ब्यबस्था गर्नै पर्छ । खुल्ला सोभनिय हुँदै हुँदैन ।
                   
शिवरात्रीको बेलामा बिशेष चर्चामा आउने नांगा बाबालाइ हेर्नकै लागि भएपनि यूवाहरुको जमात पशुपति तिर जानु आवाश्यक ठान्छ । नांगा बाबासँगै बसेर गाजा तान्नु र अझ भनौ नांगाबाबासँग सेल्फिमा रमाउनु शिवरात्रीको बिशेषता बनेको छ पछिल्लो समय । हरेक शिबरात्रीको बेला हुलका हुल नागा नेपाल भित्रने गरेका छन र शिवरात्री सकिएको भोलिपल्टदेखि नै विदा हुन थाल्छन ती बाबाहरु । हरेक शिबरात्रीलाइ बिशेष बनाउन नेपाल आउने गरेका ती नाँगा बाबा को हुन , कसरी उनीहरुको उत्पती भयो ,शिबरात्री सकिएपछि उनीहरु कहाँ जान्छन सबैको कौतुहलताको विषय हो । नांगा बाबाको बारेमा केही रहस्योद्घाटन गर्ने प्रयास गरिएको छ । नांगा शब्द धेरै पुरानो हो । भारतमा नाग वंश र नागा जातिको इतिहास पनि पूरानो छ । भारतको उत्तर पूर्वी क्षेत्रमा नागवंशी र नागजाती र दसनामी सम्प्रदायका मानिसहरु बस्छन । भारतको नाथ सम्प्रदाय पनि दशनामी सम्प्रदायसँग सम्बन्धित छ । शैव पथबाट धेरैजसो सन्यासी तथा साधुको उत्पत्ति भएको मानिन्छ । नागा शब्दको उत्पत्तिका बारेमा केही विद्धानको यस्तो मान्यता छ की नांगा शब्द संस्कृत शब्दबाट आएको हो जसको अर्थ “पहाड” हुन्छ र यहाँ बस्ने मान्छेलाई “पहाडी” अर्थात “नागा” भनिन्छ । कच्छारी भाषामा नांगा भनेको “एक बहादुर लडाकु व्यक्ति” हो । नागाको अर्थ नग्न रहनेलाइ पनि बुझिन्छ । उत्तर पूर्वी भारतमा बस्ने मान्छेलाइ पनि नागा भनिन्छ । नागाको इतिहास सनातनका आदिगुरु शंकाराचार्यसँग सम्बन्धित छ । ८ औ शताब्दीको मध्यतिर उनको जन्म भएको थियो त्यतिबेला भारतीय जनताको स्थिती खराब थियो । आक्रमणकारीहरु सलबलाएका थिए । आर्थिक सामाजिक स्थिती खराब थियो । यस चूनौतीलाइ अध्यत्मिक शक्तिले मात्र सामना गर्न पर्याप्त थिएन । त्यसकारण उनले देशको चार कुनामा धार्मिक पीठ खडा गरेर यूवा साधुलाइ व्यायाम गरी शक्तिशाली बनाए भने हतियार चलाउन पनि माहिर बनाए । ती पीठहरु साधुको अभ्यास गर्ने केन्द्र बने । कालान्तरमा कैयौ यस्ता अभ्यास गर्ने अखडा बने । धार्मिक स्थल ,श्रद्धालु भक्तजनको रक्षामा आँच आउन थाल्यो भने ती साधुको प्रयोग गर्नु भनेर शंकराचार्यले अखडामा सुझाव दिए । केयौपटक विदेशी राजा महाराजाको अक्रमणमा नांगा बाबाहरुको सहयोग लिइएको थियो । धार्मिक स्थल गोकुलको रक्षा पनि नागा बाबाले नै गरेको भनिएको छ । उसो भए नागा बाबा बन्न के गर्नुपर्ला त भन्ने लाग्न सक्छ कैयौलाई । नागा बाबा बन्न सहज छैन । कठिन प्रक्रिया पार गर्न कैयौ बर्ष लाग्न सक्छ । कोही नागा बन्न चाहन्छ र धार्मिक अखडामा जान्छन भने उसको पारिवारिक पृष्ठभुमि बुझिन्छ र किन उ नागा बाबा बन्दैछ भन्ने पनि जानकारी लिइन्छ । यदि उसको उत्तर अखडालाइ चित्त बुझेको बखतमा मात्र उसले नागा साधुको लागि अखडामा प्रवेश पाउँछ । यसमा ६ महिना देखि लिएर १२ बर्षसम्म पनि लाग्न सक्छ । सँसारिक माया मोहबाट निक्लन सक्ने मानिस मात्र नाँगा बाबा बन्न सक्छ ।


























दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले-महाकुंभ के कई अलग-अलग रंगों में एक रंग हैं- नागा साधु जो हमेशा की तरह श्रद्धालुओं के कौतूहल का केंद्र बने हुए हैं। इनका जीवन आम लोगों के लिए एक रहस्य की तरह होता है। नागा साधु बनाने की प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान ही होती है। 
नागा साधु बनने के लिए इतनी परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है कि शायद बिना संन्यास और दृढ़ निश्चय के कोई व्यक्ति इस पर पार ही नहीं पा सकता। सनातन परंपरा की रक्षा और उसे आगे बढ़ाने के उद्देश्य से विभिन्न संन्यासी अखाड़ों में हर महाकुंभ के दौरान नागा साधु बनाए जाते हैं। माया मोह त्यागकर वैराग्य धारण की इच्छा लिए विभिन्न अखाड़ों की शरण में आने वाले व्यक्तियों को परम्परानुसार आजकल प्रयाग महाकुंभ में नागा साधु बनाया जा रहा है। 
<a href='http://khabar.ibnlive.in.com/photogallery/4328/'><font size=4><font color=red> तस्वीरों में देखें: ऐसे बनते हैं नागा साधु</font color ></font size></a>
दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले-महाकुंभ के कई अलग-अलग रंगों में एक रंग हैं- नागा साधु जो हमेशा की तरह श्रद्धालुओं के कौतूहल का केंद्र बने हुए हैं। इनका जीवन आम लोगों के लिए एक रहस्य की तरह होता है।
अखाड़ों के मुताबिक इस बार प्रयाग महाकुंभ में पांच हजार से ज्यादा नागा साधु बनाए जाएंगे। आमतौर पर नागा साधु सभी संन्यासी अखाड़ों में बनाए जाते हैं लेकिन जूना अखाड़ा सबसे ज्यादा नागा साधु बनाता है। 
सभी तेरह अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा अखाड़ा भी माना जाता है। जूना अखाड़े के महंत नारायण गिरि महाराज के मुताबिक नागाओं को सेना की तरह तैयार किया जाता है। 
नागा को आम दुनिया से अलग और विशेष बनना होता है। इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है। जब भी कोई व्यक्ति साधु बनने के लिए किसी अखाड़े में जाता है तो उसे कभी सीधे-सीधे अखाड़े में शामिल नहीं किया जाता। 
अखाड़ा अपने स्तर पर ये तहकीकात करता है कि वह साधु क्यों बनना चाहता है। नागा बनने आए व्यक्ति की पूरी पृष्ठभूमि देखी जाती है। अगर अखाड़े को ये लगता है कि वह साधु बनने के लिए सही व्यक्ति है तो उसे अखाड़े में प्रवेश की अनुमति मिलती है। 
प्रवेश की अनुमति के बाद पहले तीन साल गुरुओं की सेवा करने के साथ धर्म कर्म और अखाड़ों के नियमों को समझना होता है। इसी अवधि में ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। अगर अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु यह निश्चित कर ले कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है तो फिर उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है। उन्होंने कहा कि अगली प्रक्रिया कुंभ मेले के दौरान शुरू होती है। जब ब्रह्मचारी से उसे महापुरुष बनाया जाता है। 
इस दौरान उनका मुंडन कराने के साथ उसे 108 बार गंगा में डुबकी लगवाई जाती है। 
उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं। भस्म, भगवा, रूद्राक्ष आदि चीजें दी जाती हैं। महापुरुष के बाद उसे अवधूत बनाया जाता है। अखाड़ों के आचार्य द्वारा अवधूत का जनेऊ संस्कार कराने के साथ संन्यासी जीवन की शपथ दिलाई जाती हैं। इस दौरान उसके परिवार के साथ उसका भी पिंडदान कराया जाता है। इसके पश्चात दंडी संस्कार कराया जाता है और रातभर उसे ओम नम: शिवाय का जाप करना होता है। 
जूना अखाड़े के एक और महंत नरेंद्र महाराज कहते हैं कि जाप के बाद भोर में अखाड़े के महामंडलेश्वर उससे विजया हवन कराते हैं। उसके पश्चात सभी को फिर से गंगा में 108 डुबकियां लगवाई जाती हैं। स्नान के बाद अखाड़े के ध्वज के नीचे उससे दंडी त्याग कराया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद वह नागा साधु बन जाता है। 
चूंकि नागा साधु की प्रक्रिया प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में कुम्भ के दौरान ही होती है। 
प्रयाग के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा कहा जाता है। 
हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी व नासिक वालों को खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है। इन्हें अलग-अलग नाम से केवल इसलिए जाना जाता है, जिससे उनकी यह पहचान हो सके कि किसने कहां दीक्षा ली है। 

नागा साधुओं की अद्भुत दुनिया के दर्शन

कुंभ दुनिया का सबसे बड़ा मेला माना जाता है. भारत में चार अलग अलग जगहों पर हर 12 साल में होने वाले कुंभ में इस बार ढाई लाख से ज़्यादा लोगों ने हिस्सा लिया. शिव के भक्त नागा साधु मेले का एक अभिन्न हिस्सा माने जाते हैं.
defaultटिम बाबा का संबंध तो इंग्लैंड से है लेकिन अब वह नागा साधु हैं
हरिद्वार में चल रहे कुंभ के मेले में अपनी जटाओं को चेहरे के सामने से हटाकर गुरु दत्तात्रेय विजयते अपनी चिलम में एक जोरदार दम लगाते हैं. और फिर शंख फूंकते हैं. राख में लिपटे विजयते एक नागा साधु हैं जो केवल कुंभ के दौरान ही सार्वजनिक तौर पर दिखाई देते हैं. नागा साधुओं के बाल जटाजूट होते हैं. वे गांजे का सेवन करते हैं और सन्यास में जीवन व्यतीत करते हैं. प्रार्थना, तपस्या और योग ही उनका जीवन है.
गुरु दत्तात्रेय विजयते का कहना है कि गांजा उन्हें ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है. वे जूना अखाड़े के सदस्य हैं जो नागा
Flash-Galerie Kumbh Mela Fest Indien स्नान की तैयारी करते नागा साधु
साधुओं के 13 पंथों में सबसे बड़ा पंथ है. नागा साधुओं का कुंभ मेले में हिस्सा लेने का एक और मकसद है. वह है पंथ में नए लोगों को भर्ती करना. विजयते कहते हैं, "नागा साधु बनने में 12 साल लगते हैं जिसके लिए कठोर तपस्या करनी पड़ती है. हम दत्तात्रेय संत हैं और हम यात्रा करते हैं. हम गांजा पीते हैं ताकि हम खुद को आध्यात्मिक रूप से आत्मिक और धार्मिक शक्तियों में बदल सकें. हम गर्मियां हिमालय में बिताते हैं. हमें गांजे के लिए पैसों की ज़रूरत है क्योंकि हमें तपस्या करनी होती है."
नागा साधुओं ने कभी भी अपने आध्यात्मिक विश्वासों और रीति रिवाज़ों पर समझौता नहीं किया है और इनमें सदियों से कोई बदलाव भी नहीं आया है. नागा साधु तीन प्रकार के योग करते हैं जो उनके लिए ठंड से निपटने में मददगार साबित होते हैं. वे अपने विचार और खानपान, दोनों में ही संयम रखते हैं. नागा साधु एक सैन्य पंथ है और वे एक सैन्य रेजीमेंट की तरह बंटे हैं. त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम से वे अपने सैन्य दर्जे को दर्शाते हैं.
Flash-Galerie Kumbh Mela Fest Indienकुंभ में लगता है लोगों का तांता
टिम बाबा इंग्लैंड से हैं और जूना अखाड़े के सदस्य हैं. उनका असली नाम मैथ्यू राउल बैस है. 18 साल पहले वे भारत आए थे जहां उन्हें 'भगवान' मिले. उन्हें अहसास हुआ कि भगवान एक हैं और सारे धर्म एक ही भगवान की ओर जाते हैं. उनके मुताबिक कुंभ एक ऐसी जगह है जहां कई लोग भगवान के लिए आते हैं.
कई नागा साधु अपने परिवारों को बचपन में ही छोड़ देते हैं. वे सारी सांसारिक खुशियों को त्यागकर लोगों और मीडिया की नज़र से दूर रहते हैं. लोगों के बीच नाग साधु काफी हिंसक माने जाते हैं जिससे आम जनता भी उनसे दूर रहना पसंद करती है.
नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने के लिए ज़रूरी जानकारी हासिल करने में छह साल लगते हैं. इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते. कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूं ही रहते हैं.
Flash-Galerie Kumbh Mela Fest Indienगांजे के बिना नहीं चलता नागा साधुओं का काम
निर्मल बाबा पिछले पांच वर्षों से पंथ के सदस्य हैं. वह बचपन से नागा साधु बनने के लिए बलिदान कर रहे हैं. वह कहते हैं कि गुरू की सेवा के बाद ही वह आज साधु बन पाए हैं. उनके मुताबिक, "मेरी आत्मा साफ है जो मेरे लिए बहुत ज़रूरी है."
भारत में साधुओं के जीवन अलग अलग तरह के होते हैं. कई साधु शहरों के बीचोंबीच आश्रमों और मंदिरों में रहते हैं जबकि कई गांवों के बाहर झोपड़ियों में या फिर ऊंचे पहाड़ों की गुफाओं में जीवन बिताते हैं. भारत में तकनीकी प्रगति के बाद भी नाग साधु अपने तौर तरीकों से खुश हैं.
रिपोर्टः मुरली कृष्णन/ एम गोपालकृष्णन, संपादनः ए कुमार / www.dw.com

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